Short religious story with moral
राजा भिम कि पुत्री दमयंती
ओर राजा वीरसेन के पुत्र नल दोनो हि बहुत सुंदर थे । वो दोनो एक दुसरे को बहुत प्रशसा सुनकर बिना देखे
हि वो दोनो प्रेम करने लगे थे । दमयंती का स्वयंवर मे इंद्र, वरुण, अग्नि तथा यम उसे पाने के लिये आगये थे ।
वे
चारों
भि
स्वयंवर
में
नल
का
ही
रूप
धारण
करके
आए
।
नल
के
सम्मान
रूप
वाले
पांच
पुरुषों
को
देख
दमयंती
धबारा
गई
लेकिन
उसके
प्रेम
में
इतनी
आस्था
थी
कि
उसने
देवताओं
से
शक्ती
मांग
कर
राजा
नल
को
पहचान
लिया
और
दोनों
का
विवाह
हो
गया
।
नल
दमयंती
का
मिलन
तो
होता
है,
पर
कुछ
समय
के
बाद
वियोग
भी
हो
जाता
है
।
दोनों बिछड़
जाते
हैं
।
नाल
अपने
भाइ
पुस्कर
से
जुए
मैं
अपना
सब
कुछ
हार
जाता
है
और
दोनों
बिछड़
जाते
हैं
।
दमयंती
किसी
राजधाराने मैं
शरण
लेती
है
तथा
बाद
में
अपने
परिवार
में
पहुंच
जाते
हैं
।
उसके
पिता
नल
को
ठूंठने
के
बहाने
दमयंती
के
स्वयंवर
की
घोषणा
करते
हैं
।
दमयंती
के
बिछड़ने
के
बाद
नल
को
ककोटक
नामक
सांप
डस
लेता
है
जिस
कारण
उसका
रंग
काला
पड़
गया
था
और
उसे
कोई
पहचान
नहीं
सकता
था
।
वह
बहुक
नाम
से
सारथी
बनकर
विदर्भ
पहुंचा
।
अपने
प्रेम
को
पहचानना
दमयंती
के
लिए
मुश्किल
ना
था
|
उसने अपने नल को पहचान लिया । पुस्कर से पुनः जुआ खेलकर नल ने अपनी हारी हुई बाजी जीत ली । दमयंती न केवल रुपसी युवती थि बल्की जिस से प्रेम किया, उसे ही पाने की प्रबल जिजीवीशा लिए थि । उसे देवताओं का रूप- वैभव भी विचलित न कर सका, न ही पति का वीरूप हुआ चेहरा उसके प्यार को कम कर पाया ।
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